अनिल मिश्र/पटना
बिहार प्रदेश में अभी हाल में हुए विधानसभा चुनाव से बिहार सहित देशभर के आम लोगों के साथ -साथ सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता ठंडी हवा भी नहीं ले पाए हैं। वहीं इस बार बिहार प्रदेश में तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री के तौर पर कयसों का बाजार गलाने वाली राष्ट्रीय जनता दल आज उनके हरियाणवी दोस्त संजय यादव को लेकर समीक्षा बैठक में ही राबड़ी आवास के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। वहीं देश में सबसे ज्यादा दिनों तक केन्द्र और राज्य में सरकारें चलाने वाले कांग्रेस पार्टी में भी बिहार इकाई प्रदेश अध्यक्ष को लेकर विद्रोह छिड़ गई है। वहीं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तानी सरकार के लिए सबक लेने की नसीहत मीडिया के सामने देने को आतुर दिखाई दे रहे हैं।इस बीच बिहार चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करते हुए, पाकिस्तानी विश्लेषकों ने अपनी सरकार को भी एक महत्वपूर्ण सलाह दी। उनका कहना है कि पाकिस्तानी सरकार को भी भारत (बिहार) के इस मॉडल से सीखना चाहिए और आमलोगों की जरूरतों की चीजों पर फोकस बढ़ाना चाहिए। इससे लोगों की जिंदगी में आसानी आएगी और शायद राजनीतिक स्थिरता भी आएगी, जैसा कि भारतीय जनता पार्टी ने करके दिखाया।बिहार में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे न सिर्फ देश की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण रहे, बल्कि इनका आकलन पाकिस्तान में भी किया जा रहा है। वहां के न्यूज चैनल के एक डिबेट कार्यक्रम में ये चौंकाने वाला विश्लेषण सामने आया कि इस चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की जीत का मुख्य कारण क्या था। विश्लेषकों ने पाया कि जहां कांग्रेस ने चुनाव में 'लोकतंत्र' जैसे वैचारिक मुद्दों को उठाया, वहीं बीजेपी ने कुशलता से आम नागरिक के जीवन से जुड़े व्यावहारिक विषयों जैसे- रोटी, पानी और आर्थिक सुधार पर अपना ध्यान केंद्रित रखा। इस 'विकास-केंद्रित' रणनीति ने उन्हें प्रचंड जीत दिलाई। पाकिस्तानी विश्लेषकों ने अपनी सरकार को भी इसी 'जन-केंद्रित' मॉडल को अपनाने की सलाह दी है।
बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। जबकि, एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल किया। इसका जश्न 501 किलो लड्डू बांटकर मनाने की तैयारी है। पाकिस्तानी डिबेट में इस लैंडस्लाइड विक्ट्री का गहरा विश्लेषण किया गया। ये बात विशेष रूप से रेखांकित की गई कि इस बार भाजपा का फोकस हिन्दुत्व के मुद्दे पर बिल्कुल नहीं था। उन्होंने केवल जीवन की बुनियादी जरूरतों को चुनावी हथियार बनाया। इससे पाकिस्तान को सबक लेना चाहिए।जो मौजूदा सरकार इस समय मुल्क में नहीं कर रहा है।




















