बेलेम (ब्राजील). जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जारी वैश्विक महायुद्ध में आज एक ऐतिहासिक अध्याय उस वक्त जुड़ गया जब ब्राजील के बेलेम शहर की गर्म और नम हवाओं के बीच दुनिया के तमाम दिग्गज देशों ने अपनी निगाहें जमीन से हटाकर उस अथाह नीले समंदर की ओर कीं जो हमारी धरती का तीन-चौथाई हिस्सा अपने आगोश में समेटे हुए है. सीओपी30 (COP30) के दौरान आयोजित हाई-लेवल ओशन मिनिस्टीरियल बैठक में आज वह फैसला लिया गया जिसका इंतजार पर्यावरणविद और तटीय देश दशकों से कर रहे थे. फ्रांस और मेजबान ब्राजील ने संयुक्त रूप से एक बड़ी पहल करते हुए 'ब्लू एनडीसी इम्प्लीमेंटेशन टास्कफोर्स' (Blue NDC Implementation Taskforce) के गठन का आधिकारिक एलान किया. इस घोषणा ने वैश्विक जलवायु कूटनीति की दिशा को पूरी तरह से बदल दिया है क्योंकि अब तक जलवायु नीतियों के केंद्र में जंगल और जमीन ही हुआ करते थे लेकिन आज पहली बार समंदर को भी नीतिगत दस्तावेजों में बराबरी का, बल्कि कहें तो केंद्रीय स्थान दिया गया है. यह टास्कफोर्स इस बात का प्रमाण है कि अब महासागर-आधारित जलवायु कार्रवाई महज एक 'वैकल्पिक जोड़' नहीं बल्कि पृथ्वी को बचाने का 'अनिवार्य आधार' बन चुकी है.
अमेज़न के वर्षावनों की हरियाली और अटलांटिक महासागर की लहरों के संगम पर बसे बेलेम में आज का दिन उस खामोशी को तोड़ने वाला साबित हुआ जो बरसों से गहरे पानी में दबी हुई थी. आंकड़ों की जुबानी बात करें तो स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर के महासागर, जो कार्बन सोखने का सबसे बड़ा जरिया हैं, उन्हें अब तक ग्लोबल क्लाइमेट फाइनेंस का महज एक प्रतिशत हिस्सा ही मिलता था. यानी धरती का जो नीला हिस्सा सबसे विशाल है, जलवायु को बचाने के बजट में उसका हिस्सा सबसे बौना था. लेकिन आज की घोषणा ने इस विसंगति पर प्रहार किया है. फ्रांस और ब्राजील के नेतृत्व में लॉन्च की गई यह नई टास्कफोर्स सिर्फ कागजी शेर नहीं होगी बल्कि इसका उद्देश्य देशों को 'इच्छा' से निकालकर 'कार्रवाई' के धरातल पर लाना है. बैठक में मौजूद विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन की लड़ाई तब तक नहीं जीती जा सकती जब तक हम अपनी पीठ समंदर की तरफ करके खड़े रहेंगे.
इस नए गठबंधन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ताजा शोध बताते हैं कि ओशन-बेस्ड सॉल्यूशंस यानी महासागर-आधारित समाधान 1.5 डिग्री सेल्सियस के तापमान लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी उत्सर्जन कटौती का 35 प्रतिशत तक योगदान दे सकते हैं. इसमें ऑफशोर ऑयल और गैस को चरणबद्ध तरीके से हटाना, शिपिंग उद्योग का डीकार्बोनाइजेशन करना, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों का दायरा बढ़ाना और ब्लू कार्बन इकोसिस्टम को पुनर्जीवित करना शामिल है. टास्कफोर्स का मुख्य एजेंडा इन्हीं संभावनाओं को हकीकत में बदलना है. यह तंत्र मुख्य रूप से तीन मोर्चों पर काम करेगा. पहला, यह दुनिया भर के देशों की 'राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान' (NDCs) में महासागर से जुड़ी कार्ययोजनाओं को मजबूत और लागू करने योग्य बनाएगा. दूसरा, यह 'ब्लू फाइनेंस' जुटाने में एक पुल का काम करेगा जिसमें क्लाइमेट फंड्स, डेवलपमेंट बैंक्स और निजी निवेशकों को एक मंच पर लाया जाएगा. तीसरा और सबसे अहम, यह तकनीकी सहायता और ज्ञान के आदान-प्रदान (Knowledge Exchange) के जरिए विकासशील और छोटे द्वीपीय देशों को इन नीतियों को तेजी से लागू करने में मदद करेगा.
आज के इस मिनिस्टीरियल सत्र में उत्साह का माहौल तब और बढ़ गया जब बेल्जियम, कंबोडिया, कनाडा, इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे प्रमुख देशों ने भी आगे आकर 'ब्लू एनडीसी चैलेंज' से जुड़ने की घोषणा कर दी. यह भागीदारी दर्शाती है कि विकसित और विकासशील दोनों तरह के देश अब मान चुके हैं कि तटीय अर्थव्यवस्थाएं, मत्स्य पालन और अपतटीय ऊर्जा अब मुख्यधारा का विषय हैं. फ्रांस के क्लाइमेट एम्बेसडर बेनोइट फ़ाराको ने मंच से दो टूक शब्दों में कहा कि अब वक्त वादों और कमिटमेंट से आगे बढ़कर 'इम्प्लीमेंटेशन' यानी क्रियान्वयन का है. वहीं, पुर्तगाल की मंत्री मारिया दा ग्रासा कार्वाल्हो ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि महासागर-केंद्रित नीतियां अब देशों के बीच सहयोग का नया आधार बन रही हैं. इंडोनेशिया, जो दुनिया के सबसे बड़े द्वीप समूहों में से एक है, ने इस मौके पर अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि उनके नए एनडीसी में अब मैंग्रोव और सीग्रास (Seagrass) के संरक्षण को पूरी तरह शामिल किया गया है जो उनके 'ब्लू कार्बन रोडमैप' को और मजबूती देगा.
हालांकि, इस उत्साह के बीच ओशन कंजरवेंसी और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (WRI) जैसी संस्थाओं ने एक जरूरी चेतावनी भी दी. उन्होंने याद दिलाया कि कोस्टल कम्युनिटीज यानी तटीय समुदाय दुनिया की सबसे बड़ी जलवायु जोखिम वाली आबादियों में से एक हैं, फिर भी ओशन इकोनॉमी को अभी भी क्लाइमेट फाइनेंस का नगण्य हिस्सा मिल रहा है. उन्होंने उम्मीद जताई कि यह टास्कफोर्स इस खाई को पाटने में सफल होगी. आज बेलेम में जो तस्वीर उभरी, वह स्पष्ट संकेत देती है कि ग्लोबल क्लाइमेट पॉलिटिक्स अब 'लैंड बनाम ओशन' की पुरानी बहस से बाहर निकल चुकी है. दुनिया के 10 में से 9 देश अब अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में समंदर को शामिल कर रहे हैं, जो एक बड़े बदलाव का सूचक है. 2030 के एनडीसी अपडेट्स में अब समुद्र केवल एक फुटनोट या हािए का विषय नहीं होगा, बल्कि समाधान का एक पूरा अध्याय होगा. समंदर की लहरें हमेशा से इंसान को यह संदेश देती रही हैं कि उनमें सिर्फ नमक और पानी नहीं, बल्कि जीवन को बचाने के सूत्र भी छिपे हैं; सीओपी 30 में आज दुनिया ने आखिरकार उस आवाज को आधिकारिक तौर पर सुन लिया है.

































