करी पत्ता, जिसे दक्षिण भारत में ‘करिवेपिलाई’ और उत्तर भारत में ‘कड़ी पत्ता’ कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की रसोई का ऐसा अविभाज्य हिस्सा है, जिसका उल्लेख पहली सदी ईस्वी से लेकर आज तक मिलता है. तमिल और कन्नड़ साहित्य में इस पत्ते का उपयोग, उसके औषधीय गुणों और विशिष्ट सुगंध का व्यापक विवरण मौजूद है. समय बदला, खानपान बदलता गया, लेकिन करी पत्ते का स्वाद और उसकी पहचान जस की तस बनी रही. आज यह पत्ता भारत के साथ श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीकी देशों और प्रशांत द्वीपों तक अपनी महक फैला चुका है.
दिल्ली जैसे महानगर में जहां उत्तर भारतीय मसालों का दबदबा माना जाता है, वहीं यहां भी करी पत्ते का जादू कम नहीं पड़ा. बाजारों में सजी ताज़ा हरी गांठें, घरों में उगते करी पत्ते के पौधे और अपार्टमेंट की बालकनियों में लहराता छह से आठ फीट तक ऊँचा यह पौधा, यह बताने के लिए काफी है कि इसकी लोकप्रियता भौगोलिक सीमाओं से परे जा चुकी है. दिल्ली में रहने वाले कई लोगों की तरह, जिसने दक्षिण भारतीय रसोई को करीब से नहीं चखा था, उनके लिए करी पत्ता एक नई खोज बनकर सामने आया—एक ऐसी खोज, जिसने स्वाद की बुनियाद बदल दी.
जब तड़के में राइ, जीरा और लाल मिर्च के साथ हरी, चमकदार करी पत्तियों को गर्म तेल में डाला जाता है, तो रसोई में उठती खुशबू किसी भी भोजन के प्रति जिज्ञासा बढ़ा देती है. दाल से लेकर सब्ज़ी, सांभर, उपमा, नारियल-आधारित करी, चिकन की भुनी रेसिपी, और यहां तक कि मछली मोइली तक—करी पत्ता हर व्यंजन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है. इसका स्वाद बेहद सूक्ष्म, मुलायम और प्राकृतिक होता है, जो किसी भी मसाले को दबाए बिना उसके साथ घुल-मिलकर एक नया आयाम देता है.
दिल्ली में बसे लोगों के लिए यह अनुभव कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसा लेखक राजयस्री सेन ने बताया—कि कैसे वे पहली बार यहां पहुंचकर करी पत्ते की महक और स्वाद से प्रभावित हुईं. उनके शब्दों में, “मैं जल्दी ही इसकी मुरीद हो गई.” यह भावना सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि हजारों-लाखों भारतीय रसोइयों की भी है, जो इस हरे पत्ते को चुटकी भर डालकर पूरी थाली का स्वाद बदल देते हैं.
करी पत्ता लंबे समय तक सिर्फ दक्षिण भारतीय रसोई तक सीमित दिया जाता था, लेकिन अब उत्तर भारत की घरेलू रेसिपी में भी इसका सहज इस्तेमाल दिखने लगा है. बदलती जीवनशैली, नए खाद्य-प्रयोग, फूड ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया ने भी इसे राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई है. यह सिर्फ स्वाद नहीं बढ़ाता, बल्कि आयुर्वेद में इसे पाचन सुधारने, मधुमेह नियंत्रित करने, बालों को मज़बूत करने और वजन संतुलित रखने जैसे गुणों के लिए भी जाना जाता है.
करी पत्ते की इसी लोकप्रियता और भारतीय भोजन में उसकी गहरी जड़ों को समझने के लिए घरेलू रसोइयों और खाद्य शोधकर्ताओं ने इसे कई तरह की आधुनिक व्यंजनों में भी शामिल किया है. सलाद ड्रेसिंग, करी पत्ता ऑयल, करी पत्ता चटनी पाउडर या मसाला मिश्रण—इसने आधुनिक किचन में भी अपनी जगह बना ली है.
करी पत्ते का वास्तविक जादू उसे भोजन में मिलाने की प्रक्रिया में छिपा रहता है. पारंपरिक दक्षिण भारतीय घरों में इसे डालने का तरीका पीढ़ियों से एक जैसा रहा है—तड़के की शुरुआत में गर्म तेल में इसे डालना. यह वह क्षण होता है जब करी पत्ता अपनी पूरी महक छोड़ता है और तेल उसकी आत्मा को सोख लेता है. यही तेल बाद में पूरे भोजन को सुगंधित बनाता है.
अक्सर पाठकों की जिज्ञासा रहती है कि करी पत्ता जोड़कर बनने वाले व्यंजनों की विधि क्या होती है और उनके लिए सामग्री कौन-कौन सी चाहिए. पारंपरिक शैली पर आधारित एक सामान्य ‘करी पत्ता तड़का मसाला’ की विधि, जो किसी भी दाल, सब्ज़ी या मिश्रित करी में इस्तेमाल की जा सकती है, एक उदाहरण के तौर पर खाद्य रिपोर्टिंग के भीतर शामिल की जा सकती है.
इस मसाले के लिए आवश्यक सामग्री बेहद सरल है—10 से 15 ताज़ा करी पत्ते, एक चम्मच राई, आधा चम्मच जीरा, दो सूखी लाल मिर्च, एक छोटा चम्मच बारीक कटा लहसुन, एक चुटकी हींग, हल्की मात्रा में हल्दी, नमक स्वादानुसार, और दो बड़े चम्मच तेल. विधि में सबसे पहले कड़ाही में तेल गर्म किया जाता है, फिर राई और जीरा डाले जाते हैं ताकि वे चटकने लगें. इसके बाद लाल मिर्च, लहसुन और हींग डालकर हल्का सा भुना जाता है. अंत में करी पत्तों को हथेली पर हल्का-सा मसलकर कड़ाही में डाल दिया जाता है, जिससे उसकी सुगंध और भी गहरी हो जाती है.
यह तड़का किसी भी दाल पर डाला जाए या सब्ज़ियों के स्वाद में मिलाया जाए, तुरंत एक नई पहचान बना देता है. यहीं से करी पत्ता भारतीय स्वाद का अभिन्न अंग बनकर हर भोजन को नया अनुभव देता है.
आज अंतरराष्ट्रीय रसोई में भारतीय व्यंजनों की लोकप्रियता बढ़ी है, और करी पत्ता उसकी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है. विदेशी शेफ अब उन ‘इंडियन एसेंस’ की तलाश में रहते हैं, जो किसी रेसिपी को अलग बनाती है. इस सूची में करी पत्ता सबसे ऊपर रखा जा रहा है. कई देशों में इसकी खेती होने लगी है, और जहां नहीं होती, वहां यह महंगे दामों पर बेचा जाता है.
करी पत्ते का यह सफर बताता है कि कैसे एक साधारण-सा पत्ता पहली सदी से लेकर आधुनिक रसोई तक, स्वाद की परंपरा और पहचान का वाहक बना रहा. यह सिर्फ भोजन का हिस्सा नहीं, बल्कि भारतीय खानपान की विरासत का प्रतिनिधि है—एक ऐसी विरासत, जिसकी सुगंध सिर्फ रसोई नहीं, बल्कि संस्कृति को भी जोड़ती है.




















