भारत का भोजन जितना विविध है, उतना ही उसकी कहानियों में भी गहराई छिपी है. दक्षिण भारत के केरल राज्य से निकलकर पूरे देश में अपनी अलग पहचान बनाने वाला “परोट्टा” आज सिर्फ एक डिश नहीं, बल्कि एक अनुभव माना जाता है. नर्म, परतदार, हल्की कुरकुरी और चबाने में बेहद आनंद देने वाली यह ब्रेड अब शहरों से लेकर छोटे कस्बों के होटलों में भी आम होती जा रही है. इसकी लोकप्रियता सिर्फ इसके स्वाद तक सीमित नहीं, बल्कि इसके बनने की कला, उसकी मेहनत और उसके साथ परोसी जाने वाली मटन, चिकन या वेज करी की खुशबू भी इसे खास बनाती है.
केरल में परोट्टा को सिर्फ एक फूड आइटम के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह वहां की खानपान परंपरा का हिस्सा है. टिफिन सेंटर्स, स्थानीय ढाबे, बड़े होटलों और स्ट्रीट फूड स्टॉल्स पर शाम ढलते ही आटे को हवा में उछालने की धप-धप की आवाज और तवे पर सिकते परोट्टे की खुशबू माहौल को अपने रंग में रंग देती है. असल में, इस ब्रेड की सबसे खास बात इसकी लेयर्स होती हैं. आटे को बार-बार मोड़ना, फैलाना, उछालना और फिर छोटी गोल डिस्क में सिकोड़ना इसकी पहचान है. यही लेयर इसे सॉफ्ट और चबाने योग्य बनाती है.
परोट्टा की कहानी एक दिलचस्प यात्रा भी है. माना जाता है कि इसका मूल कुछ अरबी और मलयाली खानपानों के मेल से बना. फ्लैटब्रेड की यह शैली मध्य-पूर्वी देशों के पराठों से प्रेरित हो सकती है, लेकिन केरल के पकवानों ने इसे नया रूप देकर आज का परोट्टा बना दिया. खास बात यह कि इसकी मांग अब उत्तर भारत, पूर्वोत्तर और पश्चिमी राज्यों तक पहुंच गई है. कई जगह इसे “मलाबार परोट्टा” के नाम से भी जाना जाता है.
परोट्टा का स्वाद सिर्फ उसके आटे पर निर्भर नहीं होता, बल्कि इसके साथ परोसी जाने वाली करी इसका स्वाद कई गुना बढ़ा देती है. केरल में इसे मसालेदार और “स्लो-कुक्ड” मटन करी के साथ सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. इसके अलावा चिकन चेट्टीनाड, एग करी, वेज स्टू और मशरूम ग्रेवी भी इसके साथ खूब पसंद की जाती हैं. खास बात यह है कि परोट्टा की चबाने वाली बनावट ग्रेवी के मसालों को अच्छी तरह सोख लेती है, जिससे हर बाइट स्वाद से भर जाती है.
आज जब देशभर में कई पारंपरिक व्यंजनों को आधुनिक किचन में नए तरीके से परोसा जा रहा है, परोट्टा भी उससे अछूता नहीं. कई रेस्टोरेंट इसे “लेयर्ड ब्रेड”, “केरल फ्लेकी ब्रेड” और “क्रिस्पी मलाबार परोट्टा” नाम से परोस रहे हैं. बड़े शहरों में तो मिनी परोट्टा, वीट परोट्टा, एग परोट्टा और यहां तक कि चीज़ परोट्टा जैसे फ्यूजन विकल्प भी मिलने लगे हैं. लेकिन असली स्वाद वही है—तवे पर हल्का तेल लगाकर हाथों से दबाते हुए बनाया गया गरम-गरम परोट्टा.
परोट्टा की लोकप्रियता इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि इसे बनाना देखने में जितना कठिन लगता है, उतना यह हो भी सकता है, लेकिन सही तरीका जानने के बाद इसे घर पर भी आसानी से तैयार किया जा सकता है. इसकी रेसिपी में खास बात यह है कि आटा ज्यादा नरम, ज्यादा तेल वाला और ज्यादा रेस्ट किया हुआ होना चाहिए. जितना मुलायम आटा, उतनी बढ़िया लेयरें. यही टेक्सचर इसे अन्य ब्रेड से अलग बनाता है.
अब बात करते हैं इसकी विधि और सामग्री की—ताकि पाठक इसे न केवल समझें बल्कि खुद भी घर पर बनाकर इसका प्रामाणिक स्वाद महसूस कर सकें.
परोट्टा बनाने के लिए आवश्यक सामग्री (4–5 परोट्टा के लिए):
मैदा – 2 कप
गुनगुना पानी – जरूरत अनुसार
तेल – 4–5 बड़े चम्मच
चीनी – 1 छोटा चम्मच
नमक – स्वादानुसार
दूध – 2–3 बड़े चम्मच (वैकल्पिक, आटा और नरम करने के लिए)
घी या तेल – सेंकने के लिए
परोट्टा की सामग्री बेहद साधारण है, लेकिन इसका टेक्सचर उस साधारण आटे को खास बना देता है. दक्षिण भारत में कई जगह इसमें अंडा भी मिलाया जाता है, लेकिन घरों में आमतौर पर बिना अंडे का संस्करण ही बनाया जाता है.
परोट्टा बनाने की प्रक्रिया:
सबसे पहले एक बड़े बाउल में मैदा, नमक और चीनी मिलाएं. अब इसमें हल्का गुनगुना पानी धीरे-धीरे डालते हुए इसका एक बेहद नरम और चिकना आटा गूंथ लें. इस प्रक्रिया में थोड़ा सा दूध भी मिलाया जा सकता है. इससे आटा मुलायम बनता है और परोट्टा की लेयर्स अच्छी आती हैं.
अब आटे पर 2 बड़े चम्मच तेल लगाकर कम से कम 30–40 मिनट के लिए ढककर रख दें. जितना ज्यादा आटा रेस्ट करेगा उतना अच्छा परिणाम मिलेगा.
अब आटे की बराबर लोइयां तोड़ लें और हर लोई पर थोड़ा तेल लगाएं. एक प्लेट में इन्हें कम से कम 10 मिनट दोबारा रेस्ट होने दें.
इसके बाद लोई को तवे जितना या उससे भी ज्यादा पतला बेलने या हाथों की मदद से फैलाने का काम शुरू होता है. यही परोट्टा की असली कला है. इसे बहुत पतला करके चौकोर या लंबी पट्टी जैसा बना लें.
अब इसे परत बनाने के लिए कई बार फोल्ड करें—जैसे लंबी पट्टी को प्लीट बनाते हुए मोड़ते जाएं.
फिर इस मोड़ी हुई पट्टी को गोल आकार में लपेटकर एक रोल जैसा बनाएं.
इसे हल्का हाथ लगाकर फिर से छोटा गोल परोट्टा बेल लें.
तवे पर थोड़ा तेल डालकर इसे मध्यम आंच पर दोनों ओर से हल्का कुरकुरा होने तक सेंकें.
सिकते समय जैसे ही परोट्टा फूलने लगे, स्पैटुला से हल्का दबाने पर इसके अंदर की परतें खुलती हुई दिखाई देती हैं. यही परोट्टा का जादू है. तवे से उतरते ही इसे हल्के हाथ से थपथपाने की परंपरा केरल में आम है. इससे परतें और भी ज्यादा उभर जाती हैं.
परोट्टा तैयार होते ही उसे किसी भी मसालेदार और स्वादिष्ट करी के साथ परोसा जाए तो स्वाद और बढ़ जाता है. मटन करी के साथ इसका मेल जितना लोकप्रिय है, उतना ही शाकाहारी विकल्पों के साथ भी आता है. कई जगह इसे सिर्फ दाल, चना मसाला या वेज कुर्मा के साथ भी खूब पसंद किया जाता है.
परोट्टा की लोकप्रियता बढ़ने के साथ यह सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि लोगों की यादों और यात्राओं का हिस्सा बन चुका है. जो लोग केरल गए हैं, वे अक्सर वहां के ढाबों और स्ट्रीट फूड की यादों में परोट्टा को सबसे ऊपर रखते हैं. आज यह खाना बड़े-बड़े रेस्टोरेंट्स में एक प्रीमियम डिश की तरह परोसा जाता है, लेकिन इसका असली स्वाद तो उन्हीं छोटे-से स्टॉल्स में मिलता है जहां तवे की गर्माहट और मसालों की खुशबू माहौल को जीवंत कर देती है.
कुल मिलाकर परोट्टा एक ऐसा व्यंजन है जो अपनी सरल सामग्री, मेहनत भरी तैयारी और स्वाद से हर किसी के दिल में जगह बना चुका है. चाहे त्योहार हो, परिवारिक मिलन हो या रोजमर्रा का डिनर—परोट्टा अब पूरे भारत में अपनी जगह मजबूत कर चुका है.

































