श्रावस्ती के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशासन की रोक के बावजूद किसान धड़ल्ले से पराली जला रहे हैं। धान की कटाई के बाद बचे हुए डंठलों को शाम होते ही खेतों में जलाया जा रहा है। इससे जहां एक ओर प्रदूषण बढ़ सकता है, वहीं आसपास मौजूद बीमार व्यक्तियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल विभाग ने पराली जलाने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान भी किया है, लेकिन किसान इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।किसान आमतौर पर कंबाइन मशीन से धान की कटाई करवाते हैं और पराली को अनुपयोगी मानकर जला देते हैं। हालांकि, ऐसा करने से मिट्टी में मौजूद मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं और धीरे-धीरे मृदा की उर्वरा शक्ति कम होती जाती है। पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों पर अर्थदंड लगाने का प्रावधान है। यदि कृषि भूमि का क्षेत्रफल 2 एकड़ से कम है, तो 5000 रुपए प्रति घटना का जुर्माना लगाया जाता है। 2 एकड़ से अधिक लेकिन 5 एकड़ तक की भूमि पर 10,000 रुपए और 5 एकड़ से अधिक भूमि पर 30,000 रुपए प्रति घटना का अर्थदंड निर्धारित है। “पराली दो खाद लो” अभियान चलाया जा रहा पराली को खाद में बदलने के लिए जनपद में वेस्ट डी-कम्पोजर का वितरण किया जा रहा है। किसान इसका घोल बनाकर पराली के ढेर पर छिड़क सकते हैं, जिससे दो सप्ताह में उत्तम जैविक खाद तैयार हो जाती है। फसल अवशेष जलाने की घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से “पराली दो खाद लो” अभियान भी चलाया जा रहा है, जिसके तहत पराली गौशालाओं में पहुंचाकर खाद प्राप्त की जा रही है। श्रावस्ती के जिलाधिकारी अश्वनी कुमार पांडेय ने भी किसानों से पराली न जलाने की अपील की है। उन्होंने बताया कि “पराली दो खाद लो” अभियान के माध्यम से किसान अपनी पराली गौशालाओं में पहुंचाकर खाद प्राप्त कर सकते हैं, जिससे फसल अवशेष जलाने की घटनाओं को रोका जा सके।









