डुमरियागंज के भनवापुर क्षेत्र स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) सिरसिया में सोमवार को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में कुल 113 गर्भवती महिलाओं की व्यापक चिकित्सीय जाँच, इलाज और परामर्श प्रदान किया गया। सीएचसी अधीक्षक डॉ. शैलेंद्र मणि ओझा ने बताया कि जाँच के दौरान 14 गर्भवती महिलाओं में उच्च जोखिम के लक्षण पाए गए। इसके अलावा, 24 महिलाओं में गंभीर खून की कमी (एनीमिया) पाई गई, जिन्हें तत्काल आयरन सुक्रोज की खुराक दी गई। डॉ. ओझा ने बताया कि गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, भ्रूण का बड़ा होना, गंभीर एनीमिया और प्लेसेंटा की असामान्य स्थिति जैसे कारण माँ और बच्चे दोनों के लिए जान का खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि गर्भावस्था के शुरुआती चरण में ही उच्च जोखिम वाले खतरों की पहचान और समय पर चिकित्सीय प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है, ताकि माँ और बच्चे दोनों को सुरक्षित रखा जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि गर्भावस्था के दौरान सोनोग्राफी, चिकित्सीय परामर्श और इलाज बेहद महत्वपूर्ण हैं। उच्च जोखिम के लक्षण पाए जाने पर गर्भवती महिला को कम से कम तीन बार विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लेना अनिवार्य है। इस महत्वपूर्ण शिविर को सफल बनाने में डॉ. एलबी यादव, डॉ. अनवरू दीन, ज्योति, प्रेम कुमार त्रिपाठी, अजय कुमार पांडे, रुपम पाठक, सविता मौर्या, अर्चना चौधरी, रेखा पांडे, कृष्ण गोपाल पांडे, रविंद्र कुमार, अश्वनी अग्रहरि सहित अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने सक्रिय भूमिका निभाई।
सिरसिया सीएचसी में 113 गर्भवती महिलाओं की जांच:14 उच्च जोखिम वाली महिलाएं चिन्हित, इलाज शुरू
डुमरियागंज के भनवापुर क्षेत्र स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) सिरसिया में सोमवार को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में कुल 113 गर्भवती महिलाओं की व्यापक चिकित्सीय जाँच, इलाज और परामर्श प्रदान किया गया। सीएचसी अधीक्षक डॉ. शैलेंद्र मणि ओझा ने बताया कि जाँच के दौरान 14 गर्भवती महिलाओं में उच्च जोखिम के लक्षण पाए गए। इसके अलावा, 24 महिलाओं में गंभीर खून की कमी (एनीमिया) पाई गई, जिन्हें तत्काल आयरन सुक्रोज की खुराक दी गई। डॉ. ओझा ने बताया कि गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, भ्रूण का बड़ा होना, गंभीर एनीमिया और प्लेसेंटा की असामान्य स्थिति जैसे कारण माँ और बच्चे दोनों के लिए जान का खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि गर्भावस्था के शुरुआती चरण में ही उच्च जोखिम वाले खतरों की पहचान और समय पर चिकित्सीय प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है, ताकि माँ और बच्चे दोनों को सुरक्षित रखा जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि गर्भावस्था के दौरान सोनोग्राफी, चिकित्सीय परामर्श और इलाज बेहद महत्वपूर्ण हैं। उच्च जोखिम के लक्षण पाए जाने पर गर्भवती महिला को कम से कम तीन बार विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लेना अनिवार्य है। इस महत्वपूर्ण शिविर को सफल बनाने में डॉ. एलबी यादव, डॉ. अनवरू दीन, ज्योति, प्रेम कुमार त्रिपाठी, अजय कुमार पांडे, रुपम पाठक, सविता मौर्या, अर्चना चौधरी, रेखा पांडे, कृष्ण गोपाल पांडे, रविंद्र कुमार, अश्वनी अग्रहरि सहित अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने सक्रिय भूमिका निभाई।









































